'कविता वह संवेदना पैदा करती है जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत विज्ञान को होती है। साहित्य और विज्ञान का अन्योन्याश्रित संबंध है। जो विज्ञान करता है वह कवि पहले सोच लेता है।' ये विचार व्यक्त किए प्रो. सत्यकेतु सांकृत ने। वे डॉ. राकेश गौड़ धर्मार्थ ट्रस्ट के बी.एल. गौड़ फाउंडेशन द्वारा गौड़ सरोवर पोर्टिको होटल, ग्रेटर नोएडा वेस्ट में आयोजित कवि गोष्ठी में अध्यक्ष के पद से बोल रहे थे। डॉ.बी. आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली में हिंदी के प्रोफेसर एवं संकाय अध्यक्ष तथा लेखक, आलोचक प्रोफेसर ने आगे कहा कि 'मुक्त छंद कविता में छंद से मुक्त होने की बात नहीं की गई थी। यदि कविता से छंद ही निकल जाएगा तो उसमें बचेगा क्या?' उन्होंने यह भी कहा कि 'जब तक कविता विज्ञान से नहीं जुड़ेगी, कविता, कविता नहीं बन पाएगी।'
यह आयोजन बी.एल.गौड़ फाउंडेशन द्वारा प्रवासी हिंदी साहित्यकार श्रीमती जय वर्मा की भारत से विदाई के उपलक्ष में आयोजित किया गया।
आयोजन की मुख्य अतिथि श्रीमती जय वर्मा कोई साढ़े चार दशकों से ब्रिटेन के नाॅटिंघम में रहती हैं। वहाॅं वे 'काव्यरंग' संस्था की संस्थापक सदस्य व अध्यक्ष हैं। उन्होंने अपने उद्बोधन में उक्त संस्था तथा प्रवासी जीवन के अनुभव साझा किए।
केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष श्री अनिल शर्मा जोशी ने ऐसे साहित्यिक आयोजनों की उपादेयता का उल्लेख करते हुए बी.एल. गौड़ फाउंडेशन जैसी संस्थाओं के योगदान को रेखांकित किया।
इससे पूर्व दीप प्रज्वलन के पश्चात कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत व सम्मान अंगवस्त्र,बुके व प्रतीक चिह्न देकर फाउंडेशन के संस्थापक एवं अध्यक्ष बीएल गौड़ ने किया। जबकि स्वागत भाषण कमलेश भट्ट कमल ने दिया।
कार्यक्रम में काव्य-संध्या का आरंभ डॉ. कुॅंअर बेचैन की सुपुत्री श्रीमती वंदना कुॅंअर की बहुत सराही गई वाणी- वंदना से हुआ। ग़ज़लकार डॉ. वी.के. शेखर ने अपनी ग़ज़लें प्रस्तुत करते हुए कहा-
'इल्म के साथ जब फ़िक्र भी आ गई, शायरी में मेरी जान- सी आ गई।
...
कार्पोरेट वर्ल्ड को छूट जब भी मिली,
मुफ़लिसों के मुखों से निवाले गए।
जिसने कोई कमी भी बताई कभी,
उसके पुरखों के ख़सरे खँगाले गए।'
प्रसिद्ध हाइकुकार और नवगीतकार डॉ० जगदीश व्योम ने अपनी चर्चित रचना-
तुलसी की चौपाई-सी
माॅं मीरा की पदावली-सी
माॅं है ललित रुबाई-सी।
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माॅं की उपमा केवल माॅं है,
माॅं सचमुच भगवान है।'
सुनाकर लोगों को भाव-विभोर कर दिया। उनके नवगीत-
'सारी रात महक बिखरा कर
हरसिंगार झरे'
को भी सराहा गया।
चिकित्सक एवं साहित्यकार डॉ. वीणा मित्तल ने अपने कई मुक्तक तथा एक कविता सुनाकर संध्या को और दीप्तिमान कर दिया। उनका एक मुक्तक था-
'हुई अब शाम सिंदूरी
सूरज को ढलना है
मोम और आग का संगम है,
पिघलना है तो पिघलना है।'
वंदना कुॅंअर ने अपनी ग़ज़ल 'महकाए सारी दुनिया, चंदन वो ढूॅंढती हूॅं/वंशी की धुन जहाॅं हो, मधुबन वो ढूॅंढती हूॅं।' तथा कई माहिया भी सुनाए। वंदना की सस्वर व सार्थक काव्य प्रस्तुतियों को खूब सराहा गया।
चिकित्सक एवं प्रवासी साहित्यकार तथा 'काव्यरंग' नॉटिंघम की महासचिव डॉ.जुगनू महाजन अपनी कविता 'एक पतीली एक कड़ाही/आग जलाई और घर बस गया।' के साथ-साथ 'अबके बरस जब देश जाओ/ एक काम मेरा करके आना/ वहाॅं से सुनहरी धूप की नन्ही किरणें लाना।' सुनाकर खुद भी भावुक हो उठीं और लोगों को भी भावुक कर दिया।
चिकित्सक एवं प्रवासी साहित्यकार तथा 'काव्यरंग' नॉटिंघम की व्यवस्था सँभालने वाले व 'सिटीजन ऑफ ब्रिटिश एंपायर' की उपाधि से सम्मानित प्रोफेसर रवि महाजन ने अपनी काव्य प्रस्तुति में सुनाया कि- 'बंद ऑंखों से ऐसी बीनाई दे दे/सोच को मेरी यों कर सच्चाई दे दे। मेरा दावा है कि मैं तह तक पहुॅंचूॅंगा/ दे समंदर को और गहराई दे दे।'
कार्यक्रम के संयोजक बी.एल. गौड़ ने अपनी दो महत्वपूर्ण गीत रचनाऍं प्रस्तुत कीं। पहली रचना थी - ' मन को कभी न थकने देना, मन से राजमहल बनते हैं/ मन से निर्मित होते मंदिर, मन से ताजमहल बनते हैं।' उनकी दूसरी रचना थी-ओ मेरे मन-मीत तुम कब तक रहोगे मौन? यात्रा अंतिम चरण की ओर/ धीरे-धीरे मंद होता जा रहा है/ इस जिंदगी का शोर/ आज भी तुम शून्य में नजरें गड़ाए/ ढूँढते रहते जिसे वह कौन?'
संचालक कमलेश भट्ट कमल ने अपने कुछ शेर व एक ग़ज़ल प्रस्तुत की। उनका एक शेर था-
'विरोध अपना जताने का तरीका पेड़ का भी है
जहाॅं से शाख काटी थी, वहीं से कोपलें निकलीं।' उनकी ग़ज़ल का मतला यों था-
' मैं हिंदू हूॅं वो मुस्लिम हैं कुछ ऐसा ही मनस लेकर
सियासत रोज़ ही आकर खड़ी है कैलकुलस लेकर।'
राजभाषा से जुड़े तथा ब्रिटेन में पूर्व राजनयिक रह चुके डॉ. राकेश दुबे ने अपने वक्तव्य में यह कहकर कि 'ईश्वर का दैवीय वरदान है रचनाकर्म।' लोगों का खूब ध्यान खींचा।
बी.एल.गौड़ की धर्मपत्नी बुजुर्गवार श्रीमती शारदा गौड़ का काव्य-पाठ (पुरानी प्रसिद्ध बाल कविता) सुनाकर सबको हैरत में डाल गया-
'फूलों से तुम हँसना सीखो भौरों से नित गाना।'
विशिष्ट अतिथि अनिल शर्मा ने प्रवास काल की अपनी रचना 'भटका हुआ भविष्य' प्रस्तुत करते हुए सुनाया - 'उसने जब मुझे हिंदी में बात करते हुए सुना/ बड़े गौर से मुझे देखा और बोला/ माई ग्रैंड-पा टू स्पीक इन दिस लैंग्वेज/ हिंदी बोलता हुआ मैं उसके लिए विचित्र था/ जैसे दीवार पर लगा हुआ कोई चित्र था।' उनका दूसरा गीत- 'झूम-झूम कर नाच रहीं छायाऍं आधी रात/ धूमधाम से निकल रही है बौनों की बारात।' को भी ख़ूब वाहवाही मिली।
मुख्य अतिथि श्रीमती जय वर्मा ने अपनी चर्चित रचना 'फिर से रामराज्य ' प्रस्तुत करते हुए सुनाया - ' हर युग में होगी सीता, हर युग में होंगे राम/हे मर्यादा पुरुषोत्तम राम/ करती हूंँ तुम्हें प्रणाम कलयुग में आकर देखना होगा/हनुमत को साथ लाना होगा/ वरना पूर्ण कैसे होंगे अधूरे सपने और कैसे होगा फिर से रामराज्य?' उन्होंने 'उगता है नया सूरज हर नये रिश्ते के साथ।' रचना भी प्रस्तुत की।
आभार प्रदर्शन बी.एल.गौड़ ने किया
आयोजन में 'ट्रू मीडिया' के स्वामी एवं संपादक ओम प्रकाश एवं उनकी टीम की भी उल्लेखनीय उपस्थिति रही।