26 July, 2023

गौड़ फाउंडेशन की कविगोष्ठी

 'कविता वह संवेदना पैदा करती है जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत विज्ञान को होती है। साहित्य और विज्ञान का अन्योन्याश्रित संबंध है। जो विज्ञान करता है वह कवि पहले सोच लेता है।' ये विचार  व्यक्त किए प्रो. सत्यकेतु सांकृत ने। वे डॉ. राकेश गौड़ धर्मार्थ ट्रस्ट के बी.एल. गौड़ फाउंडेशन द्वारा गौड़ सरोवर पोर्टिको होटल, ग्रेटर नोएडा वेस्ट में आयोजित कवि गोष्ठी में अध्यक्ष के पद से बोल रहे थे। डॉ.बी. आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली में हिंदी के प्रोफेसर एवं संकाय अध्यक्ष तथा लेखक, आलोचक प्रोफेसर ने आगे कहा कि 'मुक्त छंद कविता में छंद से मुक्त होने की बात नहीं की गई थी। यदि कविता से छंद ही निकल जाएगा तो उसमें बचेगा  क्या?' उन्होंने यह भी कहा कि 'जब तक कविता विज्ञान से नहीं जुड़ेगी, कविता, कविता नहीं बन पाएगी।'
      यह आयोजन बी.एल.गौड़ फाउंडेशन द्वारा प्रवासी हिंदी साहित्यकार श्रीमती जय वर्मा की भारत से विदाई के उपलक्ष में आयोजित किया गया।
   आयोजन की मुख्य अतिथि श्रीमती जय वर्मा कोई साढ़े चार दशकों से ब्रिटेन के नाॅटिंघम में रहती हैं। वहाॅं वे 'काव्यरंग' संस्था की संस्थापक सदस्य व अध्यक्ष हैं। उन्होंने अपने  उद्बोधन में उक्त संस्था तथा प्रवासी जीवन के अनुभव साझा किए।
  केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष श्री अनिल शर्मा जोशी ने ऐसे साहित्यिक आयोजनों की उपादेयता का उल्लेख करते हुए बी.एल. गौड़ फाउंडेशन जैसी संस्थाओं के योगदान को रेखांकित किया। 
  इससे पूर्व दीप प्रज्वलन के पश्चात कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत व सम्मान अंगवस्त्र,बुके व प्रतीक चिह्न देकर फाउंडेशन के संस्थापक एवं अध्यक्ष  बीएल गौड़ ने किया। जबकि स्वागत भाषण कमलेश भट्ट कमल ने दिया। 
    कार्यक्रम में काव्य-संध्या का आरंभ डॉ. कुॅंअर बेचैन की सुपुत्री श्रीमती वंदना कुॅंअर की बहुत सराही गई वाणी- वंदना से हुआ। ग़ज़लकार डॉ. वी.के. शेखर ने अपनी ग़ज़लें प्रस्तुत करते हुए कहा-
'इल्म के साथ जब फ़िक्र भी आ गई, शायरी  में  मेरी  जान- सी  आ  गई।
...  
कार्पोरेट वर्ल्ड को छूट जब भी मिली, 
मुफ़लिसों  के  मुखों  से  निवाले गए।
जिसने कोई कमी भी बताई कभी,
उसके पुरखों के ख़सरे खँगाले गए।'
    प्रसिद्ध हाइकुकार और नवगीतकार डॉ० जगदीश व्योम ने अपनी चर्चित रचना-
तुलसी की चौपाई-सी
माॅं मीरा की पदावली-सी
माॅं है ललित रुबाई-सी।
... 
माॅं की उपमा केवल माॅं है, 
माॅं सचमुच भगवान है।' 

सुनाकर लोगों को भाव-विभोर कर दिया। उनके नवगीत-
'सारी रात महक बिखरा कर 
हरसिंगार झरे' 
  को भी सराहा गया।
‌  चिकित्सक एवं साहित्यकार डॉ. वीणा मित्तल ने अपने कई मुक्तक तथा एक कविता सुनाकर संध्या को और  दीप्तिमान कर दिया। उनका एक मुक्तक था- 
'हुई अब शाम सिंदूरी 
सूरज को ढलना है
मोम और आग का संगम है, 
पिघलना है तो पिघलना है।'
    वंदना कुॅंअर ने अपनी ग़ज़ल 'महकाए सारी दुनिया, चंदन वो ढूॅंढती हूॅं/वंशी की धुन जहाॅं हो, मधुबन वो ढूॅंढती हूॅं।' तथा कई माहिया भी सुनाए। वंदना की सस्वर व सार्थक काव्य प्रस्तुतियों को खूब सराहा गया।
   चिकित्सक एवं प्रवासी साहित्यकार तथा  'काव्यरंग' नॉटिंघम की महासचिव डॉ.जुगनू महाजन अपनी कविता 'एक पतीली एक कड़ाही/आग जलाई और घर बस गया।' के साथ-साथ 'अबके बरस जब देश जाओ/ एक काम मेरा करके आना/ वहाॅं से सुनहरी धूप की नन्ही किरणें लाना।' सुनाकर खुद भी भावुक हो उठीं और लोगों को भी भावुक कर दिया।
   चिकित्सक एवं प्रवासी साहित्यकार तथा 'काव्यरंग' नॉटिंघम  की व्यवस्था सँभालने वाले व 'सिटीजन ऑफ ब्रिटिश एंपायर' की उपाधि‌ से सम्मानित प्रोफेसर रवि महाजन ने अपनी काव्य प्रस्तुति में सुनाया कि- 'बंद ऑंखों से ऐसी बीनाई दे दे/सोच को मेरी यों कर सच्चाई दे दे। मेरा दावा है कि मैं तह तक पहुॅंचूॅंगा/ दे समंदर को और गहराई दे दे।'
    कार्यक्रम के संयोजक बी.एल. गौड़  ने अपनी दो महत्वपूर्ण गीत रचनाऍं प्रस्तुत कीं। पहली रचना थी -  ' मन को कभी न थकने देना, मन से राजमहल बनते हैं/ मन से निर्मित होते मंदिर, मन से ताजमहल बनते हैं।' उनकी दूसरी रचना थी-ओ मेरे मन-मीत तुम कब तक रहोगे मौन? यात्रा अंतिम चरण की ओर/ धीरे-धीरे मंद होता जा रहा है/ इस जिंदगी का शोर/ आज भी तुम शून्य में नजरें गड़ाए/ ढूँढते रहते जिसे वह कौन?'
       संचालक कमलेश भट्ट कमल ने अपने कुछ शेर व एक ग़ज़ल प्रस्तुत की। उनका एक शेर था- 
'विरोध अपना जताने का तरीका पेड़ का भी है
जहाॅं से शाख काटी थी, वहीं से कोपलें निकलीं।' उनकी ग़ज़ल का मतला यों था-  
' मैं हिंदू हूॅं वो मुस्लिम हैं कुछ ऐसा ही मनस लेकर
सियासत रोज़ ही आकर खड़ी है कैलकुलस लेकर।'
     राजभाषा से जुड़े तथा ब्रिटेन में पूर्व राजनयिक रह चुके डॉ. राकेश दुबे ने अपने वक्तव्य में यह कहकर कि 'ईश्वर का दैवीय वरदान है रचनाकर्म।' लोगों का खूब ध्यान खींचा। 
     बी.एल.गौड़ की धर्मपत्नी बुजुर्गवार श्रीमती शारदा गौड़ का काव्य-पाठ (पुरानी प्रसिद्ध बाल कविता) सुनाकर सबको हैरत में डाल गया- 
'फूलों से तुम हँसना सीखो भौरों से नित गाना।' 
    विशिष्ट अतिथि अनिल‌ शर्मा ने प्रवास काल की अपनी रचना 'भटका हुआ भविष्य' प्रस्तुत करते हुए सुनाया - 'उसने जब मुझे हिंदी में बात करते हुए सुना/ बड़े गौर से मुझे  देखा और बोला/ माई ग्रैंड-पा टू स्पीक इन दिस लैंग्वेज/ हिंदी बोलता हुआ मैं उसके लिए विचित्र था/ जैसे दीवार पर  लगा हुआ कोई चित्र था।'  उनका दूसरा गीत- 'झूम-झूम कर नाच रहीं छायाऍं आधी रात/ धूमधाम से निकल रही है बौनों की बारात।' को भी ख़ूब वाहवाही मिली।
   मुख्य अतिथि श्रीमती जय वर्मा ने अपनी चर्चित रचना 'फिर से रामराज्य ' प्रस्तुत करते हुए सुनाया - ' हर युग में होगी सीता, हर युग में होंगे राम/हे मर्यादा पुरुषोत्तम राम/ करती हूंँ तुम्हें प्रणाम कलयुग में आकर देखना होगा/हनुमत को साथ लाना होगा/ वरना पूर्ण कैसे होंगे अधूरे सपने और कैसे होगा फिर से रामराज्य?'  उन्होंने 'उगता है नया सूरज हर नये  रिश्ते के साथ।' रचना भी प्रस्तुत की।
     आभार प्रदर्शन बी.एल.गौड़ ने किया 
    आयोजन में 'ट्रू मीडिया' के स्वामी एवं संपादक ओम प्रकाश एवं उनकी टीम की भी उल्लेखनीय उपस्थिति रही।


06 March, 2019

अमर भारती का भावांजलि समारोह

अमर भारती का भावांजलि समारोह
3 मार्च 2019, गाज़ियाबाद





















19 June, 2018

विदेश की धरती पर कवि गोष्ठी

16 जून 2018 को फ्रीमोंट कैलिफ़ोर्निया में अखिल विश्व हिंदी ज्योति की एक रंगारंग गोष्ठी संपन्न हुई। गोष्ठी में आदरणीय डॉ. जगदीश व्योम एवं उनका परिवार, आदरणीय राजेश राज जी, उनकी पत्नी, ग़ज़ल गायक डॉ. रोशन भारती, आई. सी. सी. के दिनेश शर्मा, संस्था की अध्यक्ष नीलू गुप्ता जी तथा उपाध्यक्ष मंजु मिश्रा के साथ-साथ विश्व हिंदी न्यास के एवं अखिल विश्व हिंदी ज्योति के माननीय सदस्यों की उपस्थिति में कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. व्योम ने दीप जला कर किया, सस्वर वंदना पाठ संस्था की वरिष्ठ सदस्या आदरणीय शकुंतला बहादुर जी के साथ अतिथियों एवं संस्था के सभी सदस्यों ने मिल कर किया।

सर्व प्रथम अतिथियों एवं सदस्यों के परिचय का आदान-प्रदान हुआ उसके बाद डॉ. जगदीश व्योम ने हाइकु कविता के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि हाइकु कोई छंद नहीं है हाइकु अपने आप में एक सम्पूर्ण कविता है, कुछ लोग भ्रमवश हाइकु को छन्द कहने लगते हैं यह उचित नहीं है, हाइकु सम्पूर्ण कविता है, दुनिया की सबसे छोटे आकार की कविता। हाइकू लिखना जितना सरल लगता है वास्तव में हाइकु लिखना बहुत उतना ही कठिन है, उन्होंने हाइकू दर्पण और हाइकु कोश के बारे में भी जानकारी देते हुए बताया कि "हाइकु कोश" का कार्य वे विगत कई वर्षों से कर रहे हैं जो लगभग पूर्ण होने की स्थिति में है, इसमें अब तक के लिखे गये लगभग सभी अच्छे हाइकु लिए जा रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि हाइकू दर्पण पत्रिका का का प्रवासी भारतीयों का एक अंक पहले निकल चुका है जिसमे काफी प्रवासी हाइकुकार थे, अब हाइकु दर्पण का आगामी अंक प्रवासी भारतीयों की हाइकु कविताओं पर केन्द्रित अंक प्रकाशित करने की योजना है और वे चाहते हैं कि इस बार जो अंक निकले उसमे और नए लोग भी जुड़ें।

 डा० व्योम ने "नवगीत 2013" तथा "भारतीय बच्चों के के हाइकु" की प्रतियाँ संस्था की अध्यक्ष श्रीमती नीलू गुप्ता को भेंट की।






डॉ. व्योम ने अपने कुछ हाइकु, गीत एवं नवगीत और दोहे सुनाये। राजेश राज जी ने बहुत ही सुन्दर गीत सुनाये। डॉ. रोशन दिनेश शर्मा, सुनीता माथुर नारायण, दामिनी शर्मा ने गज़ले सुनायीं. नीलू गुप्ता जी, चन्द्रिका जी ने हाइकु सुनाये, शकुंतला बहादुर जी, डी एन्जा की हिंदी विद्यार्थी तान्या बलूजा, तारा दुबे, अर्चना पांडा एवं मंजु मिश्रा ने भी रचना पाठ किया। कुल मिला कर एक बहुत ही यादगार शाम रही. अलका मदान जी ने एक बहुत ही अच्छी और गहरी बात कही कि " जैसा तुम सुनाओ, वैसा ही कोई सुने, ऐसा ऐसे ही नहीं होता" ये बात बिलकुल सही है कि अच्छी महिफल के लिए जितने महत्त्वपूर्ण अच्छा सुनाने वाले होते हैं उतना ही अच्छा सुनने वाले भी। अच्छे श्रोताओं के बिना महफ़िल सम्पूर्ण नहीं होती।

गोष्ठी में नीलू गुप्ता जी के सद्यःप्रकाशित हाइकु संग्रह "गगन उजियारा" का विमोचन भी किया गया।


गोष्ठी में उपस्थित अखिल विश्व हिंदी ज्योति एवं विश्व हिंदी न्यास के सभी सदस्यों का धन्यवाद, जो किसी कारणवश नहीं आ सके उनसे अनुरोध कि अगली बार अवश्य समय निकालें और हमारे साथ हिंदी के उत्सव में शामिल हों।
प्रस्तुति-

-मंजु मिश्रा
उपाध्यक्ष
अखिल विश्व हिन्दी ज्योति, फ्रीमोंट, केलिफोर्नियाँ





13 June, 2018

कबीर समारोह

अमेरिका की झिलमिल संस्था ने आयोजित किया कबीर समारोह


प्रिंस्टन न्यूजर्सी, अमेरिका / 09 जून 2018 
कबीर ने जब इस संसार को छोड़ा तो वे कहीं गये नहीं बल्कि थोड़ा-थोड़ा सब में समा गये। कबीर हरेक में समाये हुये हैं थोड़े थोड़े, किसी में थोड़े कम तो किसी में थोड़े ज्यादा परन्तु हैं सभी में। ऐसा हो भी क्यों नहीं क्योकि कबीर व्यक्ति का नाम नहीं एक विचारधारा है, एक समूची विचारधारा ऐसी विचारधारा जो न जाति के बंधन में बँधती है न सम्प्रदाय के, न देश की सीमाओं तक सीमित है न किसी काल से बँधी है। कबीर इसीलिए सब कहीं हैं, सब में हैं, सब के हैं, सब कहीं उन्हें प्यार, मान और सम्मान मिलता है। 
कबीर जितने अनपढ़ के हैं उतने ही विद्वान के हैं, कबीर को अनपढ़ भी गा लेता है गुनगुना लेता है तो उतनी ही शिद्दत से विद्वान उनके साहित्य की मीमांसा करने में रुचि रखते हैं। कबीर लोक के भी हैं और वेद के भी। बड़े से बड़े गायक कबीर को अपने गायन में प्रस्तुत करके असीम आनन्द की अनुभूति करते हैं। यही कारण है कि कबीर आज भी उतने ही प्रासांगिक हैं जितने वे अपने काल में रहे बल्कि अब और अधिक प्रासांगिक हो गये हैं।
[कबीर समारोह का संचालन करते हुए अनूप भार्गव]

प्रहलाद टिपानियाँ भारत वर्ष के मध्य प्रदेश में एक छोटे से गाँव में रहते हैं और कबीर के साहित्य को इकतारे पर मालवी बोली में जिस अन्दाज़ से प्रस्तुत करते हैं उसे केवल महसूस ही किया जा सकता है, यही कारण है कि पद्मश्री सम्मान से सम्मानित प्रहलाद जी को अमेरिका में बहुत प्यार और आदर के साथ सुना जाता है। आजकल प्रहलाद टिपानियाँ अपनी टीम (अजय और देवनारायण) के साथ अमेरिका में हैं,
[कबीर समारोह की सूत्रधार अम्बा देवी, समारोह की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए]


उनके कार्यक्रमों की व्यवस्था अम्बा देवी जो अमेरिका की मूल निवासी हैं वे करती हैं और बर्कले विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य की प्रोफेसर प्रांजलि अपना पूरा समय कार्यक्रमों के लिए निकालती हैं तथा प्रहलाद जी व श्रोताओं के मध्य भाषायी सेतु का कार्य करती हैं।
[कबीर समारोह में अंकित चड्ढा  की स्मृति में कविता पाठ करते हुए प्रांजलि]

9 जून 2018 को प्रिंसटन, न्यूजर्सी की साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था झिलमिल के तत्त्वावधान में अनूप भार्गव और रजनी भार्गव के संयोजन में प्रहलाद टिपानियाँ जी के कार्यक्रम को सुनने और श्रोताओं को सम्बोधित करने का अवसर मिला। टी.वी. एशिया के सभागार में आयोजित कबीर समारोह में जिस गरिमा और गम्भीरता के साथ अमेरिका के श्रोताओं ने तन्मय होकर कबीर को मालवी में सुना उससे लग रहा था कि कबीर को लोग अपने अन्तस में जिन्दा रखे हुये हैं, प्रहलाद टिपानियाँ के स्वर में कबीर ही बोलते बतियाते प्रतीत होते हैं, अपने अतिव्यस्त कार्यक्रमों में से समय निकाल कर अमेरिका के प्रवासी भारतीय घंटों बैठकर कबीर को सुनने का व्यामोह नहीं छोड़ पाये हैं तो अमेरिका की मूल निवासी अम्बा देवी ने तो अपना पूरा समय ही कबीर के लिए समर्पित कर दिया है यह इस बात का परिचायक है कि प्रहलाद टिपानियाँ के स्वर में कुछ ऐसा जादुई असर है जिससे अमेरिका में उन्हें सुनने के लिए श्रोताओं की कमी नहीं है, साथ ही अनूप भार्गव का समर्पण भाव से ऐसे आयोजनो की व्यवस्थअ करना भी है, यह साहित्य, कला और संस्कृति के लिए बड़ा योगदान है जिसे अनूप जी व उनकी टीम पूरी शिद्दत के साथ मिलकर करते आ रहे हैं।


[कबीर समारोह में अमेरिका के प्रवासी भारतीय दर्शक ]


[कबीर समारोह में प्रहलाद टिपानियाँ एवं उनकी टीम ]


[कबीर समारोह में प्रहलाद टिपानियाँ एवं उनकी टीम ]


[कबीर समारोह में प्रहलाद टिपानियाँ एवं उनकी टीम ]

यह कार्यक्रम अंकित चड्ढा की स्मृति में आयोजित किया गया था, अंकित चड्ढा दास्तानगोई के अप्रतिम युवा कलाकार थे जिनका आकस्मिक निधन विगत दिनों हो गया, उनकी स्मृति में आयोजित किया गया कबीर पर केन्द्रित कार्यक्रम अंकित को ही समर्पित था। अंकित की स्मृति में प्रांजलि ने एक कविता प्रस्तुत की एक हाइकु के माध्यम से अंकित की स्मृति शेष को मैंने (डा० जगदीश व्योम) भी नमन किया-
दास्तान हंस
हौले से हवा हुआ
काँपा शैवाल

     -डा० जगदीश व्योम 
[कबीर समारोह में दर्शकों को सम्बोधित करते हुए डा० जगदीश व्योम ]


प्रहलाद टिपानियाँ पूरे दो महीने तक प्रतिदिन अमेरिका के किसी न किसी शहर में कबीर पर अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं, उनकी यह प्रस्तुतियाँ भारत और अमेरिका के मध्य सांस्कृतिक सेतु का कार्य भी कर रही हैं। 
अनूप भार्गव और रजनी भार्गव जिस आत्मीयता के साथ भारत से आये साहित्यकारों, कलाकारों के कार्यक्रमों की व्यवस्था करते हैं उसे केवल और केवल महसूस ही किया जा सकता है।

प्रस्तुति-

-डा० जगदीश व्योम

Add caption









24 March, 2018

"नदी कहना जानती है" का लोकार्पण

रामनारायण रमण के नवगीत संग्रह नदी कहना जानती है का लोकार्पण


रायबरेली। भीतर से बाहर तक नदी के अविरल, लयबद्ध, कल्याणकारी भाव को समोये वरिष्ठ साहित्यकार श्रद्देय रामनारायण रमण जी का सद्य: प्रकाशित नवगीत संग्रह 'नदी कहना जानती है' का भव्य लोकार्पण लेखागार सभागार में रविवार, 11 मार्च को सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारम्भ माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना एवं अतिथियों के स्वागत-सत्कार से हुआ।


इस उत्कृष्ट कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक डॉ० ओमप्रकाश सिंह  ने की, जबकि दिल्ली से पधारे युवा कवि एवं आलोचक डॉ अवनीश सिंह चौहान मुख्य अतिथि एवं  सुपरिचित ग़ज़लगो नाज़ प्रतापगढ़ी विशिष्ट अतिथि रहे। डॉ० ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि रमण जी के गीत समकालीन सन्दर्भों को मजबूती से व्यंजित कर रहे हैं और उनमें संवेदना की गहराई है। उन्होंने मजदूर, किसान, गांव, शहर, बेरोजगारी जैसे विषयों को अपने नवगीतों में बखूबी पिरोया है। डॉ० अवनीश चौहान ने रमण जी के तमाम नवगीतों के अर्थ खोलते हुए उनकी सुंदर अनुभूतियों की सराहना की और कहा कि उनके साधु स्वभाव का प्रभाव उनके टटके गीतों में भी परिलक्षित होता है। उन्होंने बताया कि रमण जी के गीतों की भाषा प्रयोगधर्मी है और उनके शब्द गहन एवं नवीन हैं। नाज़ प्रतापगढ़ी ने रमण जी के नवगीतों में उर्दू भाषा के शब्दों के संतुलित प्रयोग एवं रचना कौशल की सराहना की। सुविख्यात गीतकार डॉ० विनय भदौरिया ने रमण जी के शीर्षक गीत 'नदी कहना जानती है' की विस्तार से चर्चा की और उनके गीतों को प्रेम में पगा हुआ बताया। सुप्रसिद्ध आलोचक एवं साहित्यकार रमाकांत ने रमण जी को सर्वथा मौलिक गीतकार मानते हुए कहा कि उन्होंने जो भी लिखा वह अनुभवजन्य सत्य है, इसे पोस्ट-ट्रुथ के युग में भी नाकारा नहीं जा सकता।

चर्चा-परिचर्चा में अन्य साहित्यकारों, विचारकों, आलोचकों ने एक स्वर में कहा कि रमण जी के ताज़ातरीन नवगीत साहित्य, समाज, संस्कृति को पूरी वस्तुनिष्ठता एवं मौलिकता से प्रस्तुत करते हैं। रायबरेली के सशक्त रचनाकार एव साहित्यप्रेमी सर्वश्री आनंदस्वरूप श्रीवास्तव, राजेन्द्र बहादुर सिंह राजन, शिवकुमार शास्त्री, सन्तोष डे, प्रमोद प्रखर, डॉ राकेश चन्द्रा, हीरालाल यादव, दुर्गाशंकर वर्मा, हीरालाल यादव, डॉ० राज आदि के सार्थक वक्तव्यों ने लोकार्पण समारोह को जीवंत बना दिया। मंच का शानदार संचालन चर्चित साहित्यकार जय चक्रवर्ती जी एवं डॉ विनय भदौरिया जी ने संयुक्तरूप से किया। आभार अभिव्यक्ति कार्यक्रम संयोजक रमाकान्त जी ने की।

-डा० अवनीश सिंह चौहान