29 January, 2006

दिल्ली में प्रवासी हिन्दी उत्सव की धूम


चतुर्थ प्रवासी हिन्दी उत्सव : एक रिपोर्ट

दिल्ली में प्रवासी हिन्दी उत्सव की धूम

'प्रवासी पराया नहीं है, निवेशक मात्र नहीं है बल्कि प्रियवासी है` भारत से बाहर विदेशों में बसे हिन्दी साहित्यकारों, विद्वानों का तीन दिवसीय 'चतुर्थ प्रवासी हिन्दी उत्सव` इस कथन को रेखांकित करते हुए सम्पन्न हुआ। यह त्रिदिवसीय उत्सव २०-२१-२२ जनवरी, २००६ के दौरान दिल्ली में आयोजित किया गया।
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के महानिदेशक श्री पवन वर्मा साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डा. गोपीचंद नारंग और अक्षरम् के मुख्य संरक्षक डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के मार्गदर्शन में आयोजित इस कार्यक्रम में भारतीय सांस्कृतिक संबंध् परिषद् की उपमहानिदेशक श्रीमती मोनिका मोहता, भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी श्री मधुप मोहता तथा साहित्य अकादमी की ओर से सचिव श्री के. सचिदानंदन की भागीदारी रही। भारतीय सांस्कृतिक संबंध् परिषद् की ओर से गगनांचल के संपादक श्री अजय गुप्ता तथा साहित्य अकादमी की ओर से उपसचिव श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने समन्वय किया। हिन्दी भवन और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने भी अपना भवन प्रदान कर कार्यक्रम में सहयोग किया। तीन दिन के इस उत्सव का संयोजन अक्षरम् के अनिल जोशी ने किया। नरेश शांडिल्य और राजेश जैन चेतन ने दिन-रात परिश्रम कर कार्यक्रम के संयोजन में महत्वपूर्ण सहयोग दिया।
'डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी अन्तरराष्ट्रीय कविता सम्मान`भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद्, साहित्य अकादमी और अक्षरम् के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित चतुर्थ प्रवासी हिन्दी उत्सव के प्रारंभ में ही जब २० जनवरी को दिल्ली में अणुव्रत भवन में 'डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी कविता सम्मान` श्रीमती शैल अग्रवाल बर्मिंघम, यू.के. को उनके काव्य संग्रह 'समिधा` के लिए प्रदान किया गया तो उस समारोह में वक्ताओं ने प्रवासी शब्द की संकल्पना को व्यापक एवं मार्मिक बनाए जाने पर बल दिया। इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि, 'हिन्दी जगत` नामक पत्रिका के प्रबंध संपादक डा. सुरेश रितुपर्ण ने विदेशों में लिखे जा रहे हिन्दी साहित्य के बिना हिन्दी साहित्य के इतिहास को अधूरा बताया, वहीं दूसरी ओर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त रहे, प्रख्यात मनीषी डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने कहा कि ''भारत का भूमंडलीकरण तो हो ही रहा है, आज जरूरत इस बात की है कि भूमंडल का भारतीयकरण हो।`` डा. पद्मेश गुप्त ने डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी अन्तरराष्ट्रीय कविता सम्मान की विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम में नाटिंघम से पधारी कवयित्री जय वर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। हिन्दी भवन के डा. गोविन्द व्यास ने प्रवासी शब्द के स्थान पर भारतवंशी शब्द के प्रयोग का सुझाव दिया, वहीं धन्यवाद ज्ञापित करने आये अक्षरम् के संरक्षक प्रसिद्ध कवि डा. अशोक चक्रधर ने 'प्रवासी` शब्द में ही आत्मीयता और रस भरने का आह्वान किया। 'समिधा` काव्य संग्रह की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए अक्षरम् संगोष्ठी के संपादक नरेश शांडिल्य ने एक विस्तृत आलेख पढ़ा। कार्यक्रम का संचालन अक्षरम् के अध्यक्ष राजेश चेतन ने किया।
प्रवासी नाटक 'कैमलूप्स की मछलियां` का मंचन२० जनवरी को ही रात्रि में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अभिमंच प्रेक्षागृह में लेखक आत्मजीत द्वारा लिखित मुश्ताक काक द्वारा निर्देशित प्रवासी नाटक 'कैमलूप्स की मछलियां` का मंचन श्रीराम रंगमंडल के कलाकारों ने किया। उत्तरी अमेरिका के टोरंटों में बसे पंजाबी मध्यमवर्गीय परिवारों के सामाजिक, सांस्कृतिक आर्थिक असमंजस को चिन्हित करता हुआ यह नाटक प्रवासी जीवन की विडंबनाओं का जीवंत चित्र प्रतीत हुआ। 'कनाडा में कैमलूप्स नामक नदी की मछलियां जहां जन्म लेती हैं, वहां ही मरती हैं` नाटक के उत्कर्ष पर यह वाक्य प्रवासी हृदय की पीड़ा के उन्मान की सशक्त अभिव्यक्ति था। नाटक देखने भारी संख्या में दर्शक आए। यह नाटक भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् के सौजन्य से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. मधुप मोहता; संपादक : गगनांचल ने की। विदेश मंत्रालय के सचिव समन्वय विजय कुमार मुख्य अतिथि थे। इस कार्यक्रम का संयोजन अक्षरम् के महासचिव नरेश शांडिल्य ने किया।
अकादमिक सत्रों का उद्घाटन२१ जनवरी प्रात:काल उत्सव का औपचारिक उद्घाटन हुआ। कार्यक्रम के प्रारंभ में बृजेन्द्र त्रिपाठी ने साहित्य अकादमी के सचिव के. सच्चिदानन्दन का 'स्वागत-भाषण` पढ़कर सुनाया। अस्वस्थता के कारण वे कार्यक्रम में नहीं आ सके थे। अपने स्वागत भाषण में साहित्य अकादमी के सचिव श्री सचिदानंद ने कहा कि वे हाल के प्रवासी अनुभव के स्थायी मूल्यों से परिचित हैं। यह संघर्षशील प्रेरणा बहुल अस्मिताओं, नई वस्तुनिष्ठताओं, सृजनात्मक स्मृतियों और भाषा तथा जीवन के नये परिप्रेक्ष्य का स्रोत है। दूसरे देश में हिन्दी में लेखन अपने आप में महत्वपूर्ण चयन है। यह एक साथ स्मृति और प्रतिरोध् दोनों हैं। ऐसे लेखकों ने हिन्दी साहित्य और भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है। क्योंकि वे अपने साथ विविध पृष्ठभूमि और अनुभव हिन्दी में लाये हैं। बीज वक्तव्य देते हुए जर्मनी से आये डा. इन्दुप्रकाश पाण्डेय ने विश्व में हिन्दी विषय पर प्रकाश डाला, डा. पांडेय के वक्तव्य में भावुकता एवं चिंता का सम्मिश्रण था। इस अवसर पर वर्षों तक विदेशों में हिन्दी के प्राध्यापक रहे डा. प्रेम जनमेजय ने प्रवासी के दर्द की व्याख्या करते हुए इसे सोने की लंका में रहने वाले विभीषण के दर्द की तरह बताया। अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रख्यात साहित्यकार डा. रामदरश मिश्र ने कहा कि ''प्रवासी साहित्य ने हिन्दी को नई जमीन दी है और हमारे साहित्य का दायरा दलित विमर्श और स्त्री विमर्श की तरह विस्तृत किया है।`` उन्होंने कहा, ''इस उत्सव का लाभ तात्कालिक हो न हो, कालांतर में इसका प्रतिफल गहरा होगा।`` प्रेस सूचना ब्यूरो के निदेशक डा. अक्षय कुमार ने प्रवासी श्रेणी के सरकारी पारिभाषिक अर्थ को स्पष्ट किया। संचालन करते हुए साहित्य अकादमी के उपसचिव बृजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि साहित्य और संस्कृति के माध्यम से प्रवासी भारतीय के दिलों को जोड़ा जा सकता है। इस आपसी संवाद की प्रक्रिया को और गति देनी होगी। उन्होंने कहा कि प्रवासी हिन्दी लेखन को हिन्दी साहित्य के वृहतर साहित्य के इतिहास में समाहित किये जाने की जरूरत है। उन्होंने सुझाव दिया कि भारतीय पत्रा-पत्रिकाओं में प्रवासी साहित्य का एक कॉलम निर्धारित होना चाहिए। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्रवासी हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा जाये और इसका एक परिचय कोश हो।

प्रवासी रचनाकारों पर परिचर्चाअकादमिक सत्रों की शृंखला में पहला सत्र प्रवासी रचनाकारों पर परिचर्चा का रहा। डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव, पूर्व प्राध्यापक कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय यू.के. और कोलंबिया विश्वविद्यालय ; यू.एस.ए में प्राध्यापक डा. सुषम बेदी के साहित्यिक अवदान पर चर्चा हुई। डा. राहुल, ऊषा महाजन, मीरा सीकरी और रोहिणी अग्रवाल ने इन दोनों प्रख्यात प्रवासी रचनाकारों के साहित्य के विविध पहलुओं को चिन्हित किया। अध्यक्षता करते हुए डा. महीप सिंह ने प्रवासियों में भारतीय साहित्य को पढ़े जाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि नास्ट्रेलिया कोई बुरी चीज नहीं है। इस सत्र में संवादी के रूप में ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग में हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी रहे अनिल जोशी ने दोनों रचनाकारों के साहित्य की संवेदनशीलता को मुखरित किया। संचालन कवयित्री-कथाकार अलका सिन्हा ने किया।

प्रवासी हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियां'प्रवासी हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियां` विषयक सत्रा में लंदन से आई उषा राजे सक्सेना ने यूरोप और अमेरिका के हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला। डा. सुषम बेदी ने प्रवासी साहित्य के पर्याप्त समालोचन की आवश्यकता पर बल दिया। अमेरिका से आये वेद प्रकाश बटुक ने कहा, ''यदि विश्व को बचाना है तो साहित्यकारों को छोटे-छोटे दायरों से बाहर निकलना होगा।`` गीतांजलि बहुभाषी समुदाय यू.के. के अध्यक्ष डा. कृष्ण कुमार ने प्रवासी साहित्य को मुख्यधारा में लाने का आग्रह किया। मॉरीशस के रामदेव धुरंधर ने वहां के साहित्य का विविध आयामी वर्णन किया। आस्ट्रेलिया की शैल चतुर्वेदी ने प्रवासी हिन्दी साहित्य के ठोस स्वरूप के आगमन का आह्उाान किया। साहित्यकार डॉ० कमलकिशोर गोयनका ने प्रवासी साहित्य के ऐतिहासिक, शोधपरक परिप्रेक्ष्य को उजागर किया। अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध रचनाकार हिमांशु जोशी ने कहा, ''हिन्दी जगत का सूर्य अब नहीं डूबता, हिन्दी वैश्विक हो गई है।`` इस सत्र के संचालक डा. हरीश नवल थे।
प्रवासी रचनाकारों की रचनाओं का नाट्यपाठइसी दिन सांध्यबेला में प्रवासी रचनाकारों की रचनाओं का नाट्यपाठ हुआ। आकाशवाणी के उपनिदेशक लक्ष्मीशंकर वाजपेयी के संयोजन में हुए नाट्यपाठ सत्र की संचालिका कवयित्री रितु गोयल रहीं। इस सत्र में मुख्य अतिथि भारत में सूरीनाम के राजदूत महामहिम कृष्णदत्त बैजनाथ एवं विशिष्ठ अतिथि श्री नारायण कुमार थे। अध्यक्षता गगनांचल पत्रिका के कार्यकारी संपादक अजय कुमार गुप्ता ने की। इस सत्र में प्रवासी रचनाकारों डा. सुषम बेदी, उषा राजे सक्सेना, शैल अग्रवाल, डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव, डा. इन्दुप्रकाश पांडेय, डा. कृष्ण कुमार, वेद प्रकाश बटुक और सुधा ढींगरा की रचनाओं का दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के कलाकारों अलका सिन्हा, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, नमिता राकेश, राजश्री त्रिवेदी एवं आशा त्रिवेदी ने नाट्य पाठ किया।
विदेशों में हिन्दी मीडिया
उत्सव के तीसरे दिन सबेरे प्रथम सत्र में विषय था 'विदेशों में हिन्दी मीडिया`। लंदन से आये प्रवासी टाइम्स एवं पुरवाई के संपादक डा. पद्मेश गुप्त ने इस सत्र में हिन्दी अन्तरराष्ट्रीय अखबार और प्रवासी चैनल की आवश्यकता प्रतिपादित की। प्रसि१ध्४ मीडियाकर्मी यशवंत देशमुख ने हिन्दी को भारत के परिप्रेक्ष्य से आगे बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका डा. स्मिता मिश्र ने हिन्दी फिल्मों के द्वारा वैश्विक हिन्दी प्रसार की चर्चा की। यू.के. मीडियाकर्मी रामभट्ट ने हिन्दी की विदेशों के स्थानीय मसलों तक पहुंच बनाने का सुझाव दिया। प्रसिद्ध शायर व मीडियाकर्मी मुनव्वर राणा ने हिन्दी के साथ मन, वचन और कर्म से जुड़ने की जरूरत बताई। मीडिया प्राध्यापक चैतन्य प्रकाश ने विदेशों में हिन्दी मीडिया के वैशिष्ट्य के लिए उसके प्रसार के साथ-साथ विषय-वस्तु की गुणवत्ता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। संचालन करते हुए डा. जवाहर कर्नावट ने विदेशों में हिन्दी मीडिया के इतिहास को उजागर किया। अध्यक्षीय भाषण में आकाशवाणी के निदेशक सुभाष सेतिया ने हिन्दी को विषय के तौर पर नहीं बल्कि भाषा के रूप में ही प्रसारित किये जाने पर बल दिया।
विदेश में हिन्दी शिक्षण तथा अनुवाद'विदेश में हिन्दी शिक्षण तथा अनुवाद` सत्र में प्राध्यापक डा. प्रेम जनमेजय ने शिक्षण की सुगम, मैत्रीपूर्ण, आधुनिक प्रणाली के प्रयोग का सुझाव दिया। सोपिफया विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक डा. देवेन्द्र शुक्ल ने भारतीय विद्या को विद्यारत्न में परिणत किये जाने पर बल दिया। इस सत्र में अनिल जोशी ने कहा कि अगली पीढ़ी तक यह भाषा कैसे पहुँचे, इस पर विचार आवश्यक है। उन्होंने पाठ्यक्रम की संरचना एवं सृजन के प्रयासों की आवश्यकता चिन्हित की। डा. कुसुम अग्रवाल ने हिन्दी की अन्तरराष्ट्रीय यात्राा और उसमें अनुवाद की भूमिका पर आलेख पढ़ा। प्रो. वी. जगन्नाथन ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि हिन्दी को शृंखला की पहली कड़ी होना चाहिए तथा अन्य क्षेत्राीय भाषाओं को दूसरी तथा तीसरी। उन्होंने हिन्दी भाषा के बचपन से प्रयोग एवं मौलिक अधिकारों में राष्ट्रभाषा सिखाने के अधिकार की मांग करने का आह्वान किया। इस सत्र का संयोजन व संचालन डा. राजेश कुमार ने किया।
विदेश में कंप्यूटर व हिन्दी प्रौद्योगिकी'विदेश में कंप्यूटर व हिन्दी प्रौद्योगिकी` सत्र की अध्यक्षता भाषा विज्ञानी डा. सूरजभान सिंह ने की। सत्र आरंभ करते हुए श्री विजय कुमार मल्होत्रा ने कहा कि हिन्दी के विद्वान अपने लेखन के लिए कंप्यूटर का उपयोग करते भी हैं, तो वे भी कंप्यूटर को मात्र टाइपराइटर की तरह ही इस्तेमाल करते हैं। स्पेल चैकर, आटो करेक्ट और सार्टिंग जैसे सामान्य फीचरों तक का उपयोग नहीं किया जाता। इस संदर्भ में सबसे पहले क्रांतिकारी परिवर्तन तो यही है कि आज विश्व की सभी लिखित भाषाओं के लिए युनिकोड नामक समान विश्वव्यापी कोड को लगभग सभी कंप्यूटर कंपनियों ने अपना लिया है। यह कोडिंग सिस्टम फान्ट्स मुक्त और प्लेटफार्म मुक्त है। विंडोज २००० या उससे ऊपर के सभी सिस्टम युनिकोड को सपोर्ट करते हैं। इसी युनिकोड के कारण ब्लागर आदि का निर्माण भी हिन्दी में सरलता से किया जा सकता है।
आरंभिक वक्ता के रूप में डा. अशोक चक्रधर ने अपनी रोचक शैली में बारह खड़ी के माध्यम से 'बोड़म जी` नामक पात्र के जरिए आफिस हिन्दी-२००३ के नवीनतम और अधनातन लक्षणों को समझाने का प्रयास किया। इसके बाद शारजाह से पधारीं श्रीमती पूर्णिमा वर्मन ने हिन्दी गद्य और पद्य साहित्य की अपनी लोकप्रिय वेबपत्रिकाओं www.anubhuti-hindi.org और www.abhivyakti-hindi.org का संक्षिप्त परिचय देते हुए श्रोताओं को हिन्दी में नि:शुल्क वेबसाइट निर्माण की विधि से परिचित कराया। अंत में प्रो. सूरजभान सिंह जिन्होंने सीडैक में सलाहकार के रूप में कार्य करते हुए राजभाषा विभाग के सहयोग से लीला-हिन्दी नाम से स्वयं हिन्दी शिक्षक और मंत्र नाम से अंग्रेजी-हिन्दी मशीनी अनुवाद के पैकेज विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है, ने अपना अध्यक्षीय वक्तव्य दिया। प्रो. सिंह ने अपने वक्तव्य में इन पैकेजों के बारे में विस्तार से बताते हुए यह स्पष्ट किया कि भाषिक विश्लेषण के बिना कोई भी कंप्यूटर वैज्ञानिक इस प्रकार के पैकेजों का निर्माण नहीं कर सकता।
सभी अकादमिक सत्रों का आयोजन साहित्य अकादमी के रवीन्द्र भवन सभागार में किया गया था।
सम्मान अर्पण समारोह व चतुर्थ प्रवासी भारतीय कवि सम्मेलन
२२ जनवरी, २००६, हिन्दी भवन सभागार
हिन्दी के वैश्विक विमर्श के लिए आयोजित प्रवासी भारतीय उत्सव का समापन कार्यक्रम गौरव, गरिमा और भव्यता लिए हुए था। राजधानी दिल्ली के आई.टी.ओ. स्थित हिन्दी भवन में शरद ऋतु की वह शाम इतिहास लिखने के लिए तत्पर थी। इस अपूर्व संगम का उत्कर्ष भावनात्मक उन्मानों का दस्तावेज बन गया। समापन कार्यक्रम में पहले सम्मान अर्पण हुआ और फिर प्रवासी संवेदना से एकात्मकता के मानसरोवर में हिलोरे लेने वाली भावपूर्ण कविताओं के रसास्वादन कराने वाला अनूठा चतुर्थ प्रवासी भारतीय कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ।
सम्मान अर्पण समारोहसम्मान अर्पण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की उपमहानिदेशक श्रीमती मोनिका मोहता ने इस आयोजन को अपूर्व बताते हुए अपनी शुभकामनाएं दी। इस कार्यक्रम में प्रख्यात मनीषी एवं ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त रहे डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी अध्यक्ष के नाते उपस्थित रहे। इस समारोह में विभिन्न क्षेत्रों में प्रवासी एवं निवासी भारतीयों का सम्मान किया गया। 'अक्षरम् साहित्य सम्मान` अमेरिका में रहने वाली प्रसिद्ध हिन्दी कवयित्री डा. सुषम बेदी को दिया गया। यही सम्मान प्रख्यात साहित्यकार डा. हिमांशु जोशी को देश में उनकी साहित्य साधना के लिए दिया गया।
इसी तरह 'अक्षरम् हिन्दी सेवा सम्मान` डा. कृष्ण कुमार ब्रिटेन को दिया गया तथा देश में यही सम्मान ओम विकास को प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिन्दी को स्थापित करने के लिए प्रदान किया गया। मीडिया के क्षेत्र में 'अक्षरम् प्रवासी मीडिया सम्मान` पूर्णिमा वर्मन दुबई, रामभट्ट यू.के. एवं सुधा ढींगरा यू.एस.ए. को दिया गया। 'अक्षरम् विशिष्ट सम्मान` डा. शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव को विश्व हिन्दी दिवस की संकल्पना प्रस्तुत करने के लिए तथा 'अक्षरम् विशिष्ट सहयोग सम्मान` केशव कौशिक को दिया गया। इस अवसर पर 'अक्षरम् संगोष्ठी` पत्रिका के प्रवासी विशेषांक का तथा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् की पत्रिका 'गगनांचल` का लोकार्पण भी किया गया।
चतुर्थ प्रवासी भारतीय कवि सम्मेलन
चतुर्थ प्रवासी भारतीय कवि सम्मेलन की अध्यक्षता देश-विदेश के प्रख्यात कवि डा. अशोक चक्रधर ने की। इस कवि सम्मेलन में प्रसिद्ध गीतकार डा. कुंवर बेचैन, गजलकार श्री बालस्वरूप राही एवं प्रसिद्ध कवि गोविन्द व्यास ने अपनी रचनाओं का पाठ कर खूब प्रशंसा प्राप्त की। विदेश से आमंत्रित कवियों में डा. सुषम बेदी यू.एस.ए. डा. पद्मेश गुप्त यू.के., वेद प्रकाश बटुक यू.एस.ए., ऊषा राजे सक्सेना यू.के., शैल अग्रवाल यू.के., डा. सुधा ढींगरा यू.एस.ए., पूर्णिमा वर्मन दुबई, डा. कृष्ण कुमार यू.के, नरेन्द्र ग्रोवर यू.के., शैल चतुर्वेदी यू.के. एवं रामभट्ट यू.के. ने अपने काव्यपाठ से उपस्थित श्रोताओं को मुग्ध कर दिया।
प्रसिद्ध गजलकार मुनव्वर राना ने अपनी मर्मस्पर्शी गजलों की प्रस्तुति से सभी को भावविभोर कर दिया। बृजेन्द्र त्रिपाठी, अनिल जोशी, गजेन्द्र सोलंकी, नरेश शांडिल्य, राजेश 'चेतन`, हरेन्द्र प्रताप, कमलेश रानी अग्रवाल जैसे देश के नामी कवियों ने इस कवि सम्मेलन में अपनी संवेदनशील कविताओं, दोहों, गीतों और गजलों से श्रोताओं को भावनात्मक ऊर्जा से भर दिया। कवि सम्मेलन का कुशल संचालन आकाशवाणी के उपनिदेशक लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने किया। कार्यक्रम में भारी संख्या में गणमान्य साहित्यकार और हिन्दी प्रेमी उपस्थित थे। दिल्ली के अतिरिक्त दूसरे राज्यों से भी साहित्यकारों की उपस्थिति ने समारोह की गरिमा को विशेष रूप से बढ़ाया। कार्यक्रम के अंत में चतुर्थ प्रवासी हिन्दी उत्सव के मुख्य संयोजक अनिल जोशी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया।
अक्षरम् संगोष्ठी ब्यूरो